इब्तदा
फिर से मौसम बहारों का आने को है, फिर से रंग-ए-ज़माना बदल जायेगा
अब के बज़्म-ए-चरागां सजायेंगे हम, ये भी अरमान दिल का निकल जायेगा ।
फीकी फीकी सी कयूँ शाम-ए-महखाना है, लुत्फ़-ए-साक़ी भी कम खाली पैमाना है
अपनी नज़रों से ही कुछ पिला दीजिये, रंग महफिल का खुद ही बदल जायेगा ।
आप कर दें जो मुझ पर निगाह-ए-करम, मेरी उलफ़त का रह जायेगा कुछ भरम
यूं फसाना तो मेरा रहेगा वही , सिर्फ उन्मान उनका बदल जायेगा ।
मेरे मिटने का उनको ज़रा ग़म नहीं, ज़ुल्फ भी उनकी ए दोस्त बरहम नहीं
अपने होने ना होने से होता है क्या, काम दुनिया का यूँ भी तो चल जायेगा |
आपने दिल जो 'ज़ाहिद' का तोडा तो क्या, आपने उसकी दुनिया को छोडा तो क्या
आप इतने क्यों आखिर परेशान हैं, वो संभलते संभलते संभल जायेगा ।
अब के बज़्म-ए-चरागां सजायेंगे हम, ये भी अरमान दिल का निकल जायेगा ।
फीकी फीकी सी कयूँ शाम-ए-महखाना है, लुत्फ़-ए-साक़ी भी कम खाली पैमाना है
अपनी नज़रों से ही कुछ पिला दीजिये, रंग महफिल का खुद ही बदल जायेगा ।
आप कर दें जो मुझ पर निगाह-ए-करम, मेरी उलफ़त का रह जायेगा कुछ भरम
यूं फसाना तो मेरा रहेगा वही , सिर्फ उन्मान उनका बदल जायेगा ।
मेरे मिटने का उनको ज़रा ग़म नहीं, ज़ुल्फ भी उनकी ए दोस्त बरहम नहीं
अपने होने ना होने से होता है क्या, काम दुनिया का यूँ भी तो चल जायेगा |
आपने दिल जो 'ज़ाहिद' का तोडा तो क्या, आपने उसकी दुनिया को छोडा तो क्या
आप इतने क्यों आखिर परेशान हैं, वो संभलते संभलते संभल जायेगा ।
1 तबसिरात:
वाह भई वाह! मेरे ज़ेहन में तो जैसे जगजीत की आवाज़ में समूची गज़ल कौंध गई। यदि शायर का परिचय थोड़ी तफ़सील से शामिल कर पाएं तो और अच्छा हो..
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