ख़ाक
आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक
कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ के सर होने तक ।
दामे हर मौज में है हल्क़ा-ए-सदकामे निहंग
देखें क्या गुज़रे है क़तरे पे गुहर होने तक ।
आशिकी सब्र तलब और तमन्ना बेताब
दिल का क्या रंग करूँ ख़ूने जिगर होने तक ।
हमने माना कि तग़ाफुल न करोगे, लेकिन
ख़ाक हो जाएँगे हम, तुमको ख़बर होने तक ।
परतवे ख़ुर से है शबनम को फ़ना की तालीम
मैं भी हूँ एक इनायत की नज़र होने तक ।
इक नज़र बेश नहीं फ़ुर्सत-ए-हस्ती ग़ाफिल
गर्मि-ए-बज़्म है इक रक़्स-ए-शरर होने तक ।
ग़मे हस्ती का 'असद' किससे हो जुज़ मर्ग इलाज
शमा हर रंग में जलती है सहर होने तक ।
सदकामे निहंग - सौ जबड़ों वाला मगरमच्छ
गुहर - मोती
तग़ाफुल - देरी
परतवे ख़ुर - सूरज की किरण
बेश - नज़र का आधिक्य
ग़ाफिल - उपेक्षित, बेख़ब्रर
गर्मि-ए-बज़्म - सभा की रौनक
रक़्स-ए-शरर - चिंगारी का नाच
जुज़ - सिवाय
मर्ग - मौत
कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ के सर होने तक ।
दामे हर मौज में है हल्क़ा-ए-सदकामे निहंग
देखें क्या गुज़रे है क़तरे पे गुहर होने तक ।
आशिकी सब्र तलब और तमन्ना बेताब
दिल का क्या रंग करूँ ख़ूने जिगर होने तक ।
हमने माना कि तग़ाफुल न करोगे, लेकिन
ख़ाक हो जाएँगे हम, तुमको ख़बर होने तक ।
परतवे ख़ुर से है शबनम को फ़ना की तालीम
मैं भी हूँ एक इनायत की नज़र होने तक ।
इक नज़र बेश नहीं फ़ुर्सत-ए-हस्ती ग़ाफिल
गर्मि-ए-बज़्म है इक रक़्स-ए-शरर होने तक ।
ग़मे हस्ती का 'असद' किससे हो जुज़ मर्ग इलाज
शमा हर रंग में जलती है सहर होने तक ।
सदकामे निहंग - सौ जबड़ों वाला मगरमच्छ
गुहर - मोती
तग़ाफुल - देरी
परतवे ख़ुर - सूरज की किरण
बेश - नज़र का आधिक्य
ग़ाफिल - उपेक्षित, बेख़ब्रर
गर्मि-ए-बज़्म - सभा की रौनक
रक़्स-ए-शरर - चिंगारी का नाच
जुज़ - सिवाय
मर्ग - मौत
2 तबसिरात:
रक़्से शरर। क्या बात है।
shaayad Gaalib kii sabase mashahuur Gazal. kam se kam sabase zyaadaa fanakaaro.n dwaaraa gaaii ga_ii to hogii hii.
kuchh 'turat' sa.nshodhan:
2.
daame > daam. matalab hai jaal/trap
niha.ng = magarmachchh
sadakaam-e-niha.ng = sau jaba.Do.n waalaa magaramachchh
5.
partav-e-khuur > partav-e-khur (chhoTaa u) = suuraj kii kiraN
agalii kaa intazaar hai..
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