कभी यूँ भी आ
कभी यूँ भी आ मेरी आँख में, के मेरी नज़र को ख़बर न हो
मुझे एक रात नवाज़ दे, मगर उसके बाद सहर न हो
वो बड़ा रहीम-ओ-करीम है, मुझे ये सिफत भी अता करे
तुझे भूलने की दुआ करूँ, तो दुआ में मेरी असर न हो
कभी दिन की धूप में झूम के, कभी शब के फूल को चूम के
यूँ ही साथ साथ चलें सदा, कभी खत्म अपना सफर न हो
मेरे पास मेरे हबीब आ, ज़रा और दिल के क़रीब आ
तुझे धड़कनों में बसा लूँ मैं, के बिछड़ने का कभी डर न हो
- बशीर बद्र
मुझे एक रात नवाज़ दे, मगर उसके बाद सहर न हो
वो बड़ा रहीम-ओ-करीम है, मुझे ये सिफत भी अता करे
तुझे भूलने की दुआ करूँ, तो दुआ में मेरी असर न हो
कभी दिन की धूप में झूम के, कभी शब के फूल को चूम के
यूँ ही साथ साथ चलें सदा, कभी खत्म अपना सफर न हो
मेरे पास मेरे हबीब आ, ज़रा और दिल के क़रीब आ
तुझे धड़कनों में बसा लूँ मैं, के बिछड़ने का कभी डर न हो
- बशीर बद्र
2 तबसिरात:
Badar Sahab ki ye behtareen ghzalon mein se ek hai aur jagjit ji ki gayki ne ismein char chand laga diye hain.
Nice Sad Poetry
https://ringpoetry.blogspot.com/2019/03/urdu-broken-heart-poetry-2019.html?m=1
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