बज़्म

उर्दु ज़बान की चाशनी में घुली महफ़िल-ए-सुख़न

Saturday, August 28, 2004

ये तसल्ली है

ये तसल्ली है कि हैं नाशाद सब
मैं अकेला ही नहीं बरबाद सब

सबकी ख़ातिर हैं यहाँ सब अजनबी
और कहने को हैं घर आबाद सब

भूलके सब रंजिशें सब एक हैं
मैं बताऊँ, सबको होगा याद सब

सबको दावा-ए-वफ़ा, सबको यक़ीं
इस अदाकारी में हैं उस्ताद सब

शहर के हाकिम का ये फ़रमान है
क़ैद में कहलायेंगे आज़ाद सब

चार लफ़्जों में कहो जो भी कहो
उसको कब फ़ुरसत सुने फ़रियाद सब

तल्ख़ियाँ कैसे न हों अशआर में
हम पे जो गुज़री हमें है याद सब

- जावेद अख़्तर


Saturday, August 21, 2004

ऎसा आसाँ नहीं

वो फ़िराक़ और वो विसाल कहाँ
वो शब-ओ-रोज़-ओ-माह-ओ-साल कहाँ

फ़ुर्सते कारोबारे शौक़ किसे
ज़ौक़े नज़्ज़ारा-ए-जमाल कहाँ

दिल तो दिल वो दिमाग़ भी न रहा
शोरे सौदा-ए-ख़त्त-ओ-ख़ाल कहाँ

थी वो इक शख़्स के तसव्वुर से
अब वो रानाई-ए-ख़्याल कहाँ

ऎसा आसाँ नहीं लहू रोना
दिल में ताक़त जिगर में हाल कहाँ

हमसे छूटा क़िमारख़ान-ए-इश्क़
वाँ जो जाएं गिरह में माल कहाँ

फ़िक्रे दुनिया में सर खपाता हूँ
मैं कहाँ और ये बवाल कहाँ

मुज़महिल हो गए कुवा, 'ग़ालिब'
वो अनासिर में एतिदाल कहाँ


फ़िराक़ - विरह
विसाल - मिलन
सौदा-ए-ख़त्त-ओ-ख़ाल - रूप रेखा का सामान
तसव्वुर - सौन्दर्य-कल्पना
क़िमारख़ान-ए-इश्क़ - प्रणय का जुआघर
मुज़महिल - निश्चल, शिथिल
कुवा - शक्ति, ताकत
अनासिर - तत्व आदि
एतिदाल - सन्तुलन