ये तसल्ली है
ये तसल्ली है कि हैं नाशाद सब
मैं अकेला ही नहीं बरबाद सब
सबकी ख़ातिर हैं यहाँ सब अजनबी
और कहने को हैं घर आबाद सब
भूलके सब रंजिशें सब एक हैं
मैं बताऊँ, सबको होगा याद सब
सबको दावा-ए-वफ़ा, सबको यक़ीं
इस अदाकारी में हैं उस्ताद सब
शहर के हाकिम का ये फ़रमान है
क़ैद में कहलायेंगे आज़ाद सब
चार लफ़्जों में कहो जो भी कहो
उसको कब फ़ुरसत सुने फ़रियाद सब
तल्ख़ियाँ कैसे न हों अशआर में
हम पे जो गुज़री हमें है याद सब
- जावेद अख़्तर
मैं अकेला ही नहीं बरबाद सब
सबकी ख़ातिर हैं यहाँ सब अजनबी
और कहने को हैं घर आबाद सब
भूलके सब रंजिशें सब एक हैं
मैं बताऊँ, सबको होगा याद सब
सबको दावा-ए-वफ़ा, सबको यक़ीं
इस अदाकारी में हैं उस्ताद सब
शहर के हाकिम का ये फ़रमान है
क़ैद में कहलायेंगे आज़ाद सब
चार लफ़्जों में कहो जो भी कहो
उसको कब फ़ुरसत सुने फ़रियाद सब
तल्ख़ियाँ कैसे न हों अशआर में
हम पे जो गुज़री हमें है याद सब
- जावेद अख़्तर